Raat — रात
Another great poem by my friend who writes under the pen-name ”Vyom”.
एक अजीब सा माहौल था उस रात।
चाँद नहीं था आसमान में, पर तारे चांदनी को इठला रहे थे।
बादलों का दूर - दूर तक निशान नहीं था, पर तूफान का आना लगभग तय था।
हवाएँ खेल तो रही थी पत्तों के संग, पर उस रात एक खामोशी थी खेल में।
जंगलों की गुर्राहट शहरों तक सुनाई दे रही थी।
उस रात पक्षी घोंसलों में नहीं थे, शायद उन्हें तूफान का आभास था।
सहर शमशान सा सांत था।
गाड़ियाँ तो चल रही थी पर कहीं हॉर्न की आवाज़ नहीं थी, मानो सब कायदे से हो रहा हो, मानो जैसे हर कोई ख़ौफ़ में हो।
ख़ौफ़, जो देर हो जाने के ख़ौफ़ से बड़ा था।
अजीब थी वो रात पर आखिर रात ही थी ना।
रातों की किस्मत होती है सवेरे से मात खाना।
लोग जानते थे कि सुबह आयेगी।
जब फिर सब तरीके से होगा पर उन तरीकों को कोई व्यक्ति विशेष तय नहीं करेगा।
जब हवा, समुद्र या रोशनी पर किसी की पाबंदी नहीं होगी।
जब हंसी की गूंज तभी आयेगी जब उसकी वजह होगी और आँसू भी बिन वजह नहीं बहेंगे।
तब तक जरूरी है इस रात में जागना और दूसरों को सोने ना देना ताकि उस नए सूरज की किरणों से कोई अनजान ना रह जाए।।
— व्योम