Apne Apne Bhagwaan — अपने अपने भगवान
A powerful poem by my friend who writes under the pen-name ”Vyom“.
अजीब सा माहौल है,
मानो सब गोल मोल है
कोई इधर, कोई उधर,
सब के सब है तीतर बितर
कोई है मग्न यहाँ राम में,
किसी की जान है क़ुरान में
कोई भगवे में हो रहा है लीन,
तो कोई हरा भरा है रात दिन
कोई मांगता रहे रिहाई,
की खतरे में हैं सारे भाई
कहीं डर का माहौल है,
कहीं खुल रही अब पोल है
कोई चीख़ता - चिल्लाता यहाँ
कोई बम से उड़ाता यहाँ
कोई मस्जिद को है तोड़ रहा
कोई मंदिर का ईंटा जोड़ रहा
अजीब सख्त वक्त है
गिर रहा हर तख्त है
हर खून मानो सो रहा
है काल मानो रो रहा
हर शख़्स किसी से लड़ रहा
खुदा भी अब तो डर रहा
इनसानियत ही है खुदा
खुदा से ना कोई जुदा
संभल जा तू अब मान जा
इस बात को अब जान जा
ये बात भी ना सच्चा हो
सिर्फ खुदा का बंदा अच्छा हो
सिर्फ राम नाम का ही बोल रहे
इन बातों का फिर क्या मोल रहे?
हर बात को है जानता,
वो सबको ही तो मानता
इनसानियत बनाई जिसने, तू उसे ही बचा रहा!
दुनिया बनाई जिसने , तू उसे दुनिया दिखा रहा!
दया रखो, धर्म करो
ये पाठ जो है बोलता
दंगे करवाके, हिंसा अपना के
उनके मूल्यों को है तू तोलता!
राम तू, क़ुरान तू,
नानक साहब का ज्ञान तू
सच्ची समझ जो आ जाये,
तो परमेश्वर रूपी इंसान तू!
— व्योम